बिलवा निवासी साधु दास पंडित के पास शालिग्राम जी की मूर्ति थी जिसकी वह बड़े विधि विधान से पूजा किया करते थे एक बार समर्थ साईं श्री जगजीवन दास जी की कीर्ति सुनकर वे स्वामी जी के गांव आए और सरयू नदी में स्नान करके पूजा करने लगे उसी समय समर्थ साईं श्री जगजीवन दास जी सरयू नदी में स्नान करने को जा रहे थे पंडित जी ने समर्थ साईंजगजीवन दास जी को जाते हुए देखा किंतु अभिमान एवं अज्ञानता बस अभिवादन बंदन ना किया और अपनी पूजा में बैठे रहे जब समर्थ साई जगजीवन दास जी सरयू नदी में स्नान करने लगे और पंडित जी ने जब ध्यान में आंखें बंद की तब मूर्ति अपने आप सिंहासन से उठकर सरयू नदी में चली गई थोड़ी देर बाद जब पंडित जी ने आंख खोली तब मूर्ति को सिंहासन पर ना पाया तो बहुत दुखी हो गए और विचार करने लगे कि यहां कोई आया भी नहीं तब भगवान की मूर्ति कहां चली गई इतने में उधर से एक और साधु आया और कहा कि तुम जिस की पूजा करते हो और अपना ठाकुर कहते हो उसका आना-जाना भी तुमको मालूम नहीं होता क्या किसी महात्मा से दिव्य दृष्टि नहीं पाई कि सब कुछ दृष्टिगोचर हो जाता है संभवत तुमने स्वामी जी को भी जाते हुए ना देखा होगा जो इसी तरफ से जाकर सरयू नदी में स्नान कर रहे हैं यह सुनकर साधु दास ब्राह्मण समर्थ साई जगजीवन दास जी के पास दौड़कर पहुंचे और हाथ जोड़कर कहा कि मेरी भूल क्षमा करें प्रभु मेरे भगवान कहीं चले गए हैं आप उन्हें वापस बुला दीजिए तब समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा भगवान तो सर्व व्यापी हैं कहां नहीं है उनका आना जाना कैसा है भक्तों को आनंद देने हेतु सगुण रूप में हो जाते हैं उनका नाम इच्छाधारी लीला बिहारी है वह तुम्हारे अधीन नहीं है फिर सोच क्यों करते हो और पंडित होकर ध्यान से क्यों नहीं देख लेते अनजान लोगों की तरह पूछते हो देखो कैसे रूप में स्नान कर रहे हैं तब साधु दास ब्राह्मण ने स्वामी जी के चरणों में गिरकर प्रार्थना की कि मैं अब तक अनजान मूर्ख था इसलिए मुझे कुछ नहीं दिखाई पड़ा, दया करके मुझे ज्ञान उपदेश कीजिए तब स्वामी जी ने उन्हें मंत्र उपदेश देकर ध्यान की विधि बताइए जिससे उन्हें सब कुछ दीखने लगा और ठाकुर जी को शरीर में स्नान करते देखा और यह भी देखा कि स्नान करके सिंहासन पर आ गए जब आंख खुली तब ठाकुर जी की मूर्ति वापस पाकर प्रसन्नता पूर्वक स्वामी जी के स्थान पर आए और सत्संग में रहकर सिद्ध हो गए।🌷
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Thursday, March 28, 2019
कीर्ति गाथा 34
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