एक मुसलमान मुगल मिर्जा समर्थ साई जगजीवन दास जी की महिमा सुनकर बहुत दूर से चलते चलते घाघरा तट पर पहुंचे और लोगों से समर्थ साईं जगजीवन दास जी का गांव सरदहा कितनी दूर है,लोगों से पूछा और कहा कि मुझे वहां जाना है ,तब लोगों ने बताया कि नदी के उस पार निकट ही है, यह सुनकर वे प्रसन्नता से एक छोटी सी नाव में बैठ गए और बिना प्रतीक्षा किये अकेले ही नदी के पार ले चलने के लिए मल्लाह से कहा और पूरी नाव के किराए से अधिक धन नाव.वालों को पुरस्कार स्वरूप में दे दिया और यह भी कहा कि मेरे साथ ही दूसरी नाव मे मेरे साथ वाले लोग हैं वे सब बाद में आते रहेंगे मल्लाह नाव लेकर नदी की धारा मे चल पड़ा , जिस समय नाव नदी की धारा में पहुंची अचानक जोर से हवा चलने लगी और आंधी आ गई जिससे हवा के थपेड़ों ने नाव को उलट दिया उस समय मिर्जा जी ने कातर भाव से स्वामी जी को पुकार कर कहा कि आप समर्थ हैं मेरी रक्षा कीजिए मैं बिना आपके दर्शन किए ही डूबा जा रहा हूं इतना कहते ही उन्हें पानी में एक छवि दिखाई दी और ऐसा प्रतीत हुआ कि किसी ने हाथ पकड़ कर उन्हें किनारे पर पहुंचा दिया उनको बचाया, किन्तु उन्हेंअभी मालूम ना हो सका कि वह कौन थे और कहां चले गए होश में आने पर अपने को नदी के किनारे पाया तो स्वामी जी को ढूंढने लगे अंततः चलकर समर्थ साई जगजीवन दास जी के पास पहुंचे तब उन्हें देखकर पानी में देखी हुई छवि के अनुरूप पहचान कर आनंद मग्न हो गए समर्थ साईं श्री जगजीवन दास जी ने उन्हें बैठने को कहा और कुछ समय उपरांत मिर्जा जी को अपने पेश कवच की याद आई जो सदा उनके कमर में बंधी रहती थी वह वहां मौजूद ना थी तब उन्होंने सोचा कि शायद नदी में गिर गई होगी तब स्वामी जी ने कहा कि पेश कवच ताक पर रखा है उसे उठाइए और उसको अपनी कमर से अलग क्यों रख दिया था मिर्जा जी ने ताक पर से पेश कवच को उठाया तो देखा कि उनका में म्यान भीगा हुआ था इसे देख मिर्जा जी ने स्वामी जी से कहा कि आप की क्या प्रशंसा की जाए मेरी जान बचाने वाले आप ही हैं जैसा आप के बारे में सुना था वैसा ही पाया दुनिया के रखवाले आप ही महात्मा लोग हैं फिर कुछ दिनों तक स्वामी जी के सानिध्य में रहकर अपने स्थान वापस चले गए।🌷
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Thursday, March 28, 2019
कीर्ति गाथा 33
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