एक बार समर्थ साई जगजीवनदास जी ने बालक ( अपने सबसे छोटे पुत्र ) जलाली दास को अपने पास बिठाकर सतनाम पंथ की मर्यादा बताइ और कहा इस पंथ के लोग तमाम आशायें सदा के लिए छोड़ देते हैं सत्यनाम के सुमिरन का धागा हर समय ब्रह्म से जुड़ा हुआ समझा करो सोते जागते किसी समय रिश्ता टूटना नहीं चाहिए और सत्यनाम सुमिरन की डोर के सहारे ही जीव परम पद तक पहुंचता है इसे सुनते ही जलाली दास जी मगन हो गए एक दिन वह अन्य बालकों के साथ खेलने गए खेल -खेल में वह आगे आगे भागे और बालक पीछे पीछे दौड़े जलाली दास जी दौड़ते हुए घाघरा के जल के ऊपर से नदी के उस पार चले गए और फिर उसी प्रकार वापस लौट आए इसे देखकर लड़के आश्चर्यचकित हो गए इसकी सूचना जब स्वामी जी को मिली तो उन्होंने समझाया कि सुमिरन भजन करना ही महात्माओं का कार्य है और तरह के दिखावे से परहेज करना चाहिए
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Thursday, March 28, 2019
कीर्ति गाथा 30
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