एक गांव में एक साधु रात्रि के समय पहुंचे उनके पास दंड कमंडल और दो कुत्ते साथ में थे वह जिस किसान के दरवाजे पर ठहरे थे वे दोनों भाई बहुत संपन्न थे ,साधु ने किसान से थोड़े से चावल और दूध कुत्तों को खीर बनाकर देने हेतु मांगा तब किसान ने जवाब दिया कि हम कोदौ बोते हैं धान नहीं बोते इस पर साधु ने कहा कि बच्चा तुम्हारे कोदौ में बरकत बढ़ोतरी हो हम चावल कहीं और मांग लेंगे इतना कहकर साधु लोग वहां से उठकर गांव के किसी दूसरे गृहस्थ धर्मात्मा से दूध चावल लेकर कुत्तों को खीर खिलाई और चले गए उस दिन से जितने धान और चावल पहले वाले किसान के खेत में घर में थे सब कोदौ हो गए जिसे देख कर उसे बहुत दुख हुआ और वह उस साधु को ढूंढने लगे किंतु वह ना मिले तब वह दोनों भाई समर्थ साईं जगजीवनदास के पास आए और पूरा वृत्तांत सुना कर कहा कि महाराज हम बड़े पापी हैं और हमने साधु जी से झूठ कह कर उन्हें चावल देने से मना कर दिया और अब हम उनके श्राप से पीड़ित हो गए हैं तब समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा कि महात्मा और साधुओं से ऐसी बात कभी नहीं कहनी चाहिए, जाओ जो बोया गया होगा वही पैदा होगा तब धान और चावल पैदा हुआ अत: इन दोनों ने स्वामी जी से मंत्र उपदेश लिया और साधु सेवा का धर्म पालन प्रारंभ किया।
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Wednesday, March 27, 2019
कीर्ति गाथा 25
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