एक भाट भक्तस्वामी जी के पास रहा करता था उसने एक बार तराई के खेतों में धान उगाया उस साल घाघरा में बहुत बाढ़ आई जिससे खेत की सारी फसल बह गई तब भक्त ने समर्थ साई जगजीवन दास जी से निवेदन किया की खेती की सारी फसल बाढ़ में नष्ट हो गई अब हाकिम लगान मांगेगा तब हमें घर छोड़कर भागना पड़ेगा इस पर समर्थ साई जगजीवन दास ने कहा कि हर इच्छा भगवान की इसमें किसी को क्या अधिकार है यह सुनकर वह भक्त उदास मन से घर चला आया और एक दिनसमर्थ साई जगजीवन दास जी को अपने खेतों की तरफ ले आया और हाथ जोड़कर यह विनती की कि नदी की बाढ़ धान की फसल को बहा ले गई अब आपके चरण कमल इन खेतों में पड़े हैं इसका फल मिलना चाहिए तब स्वामी जी ने कहा कि ईश्वर की इच्छा से जो कार्य होता है उसमें सदैव ही सुख मिलता है उनके निकट कुछ भी असंभव नहीं है धान पुनः जम आये ऐसा भी हो सकता है इस पर भक्त ने कहा कि पाँच मन चूरा अभ्यागतों के लिए प्रसाद चढ़ाऊँगा तदोपरांत समर्थ साई जगजीवन दासजी अपने स्थान पर वापस चले आए और भगवान की दया से खेत में फिर से धान हो गया और इतना अधिक धान पैदा हुआ कि जितना पहले कभी पैदा नहीं हुआ था भक्त ने प्रसन्नता पूर्वक लगान अदा किया और अभ्यागतों हेतु प्रसाद भी चढ़ाया और प्रसन्नता पूर्वक रहने लगा।।
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Wednesday, March 27, 2019
कीर्ति गाथा 24
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