एक अहीर(यादव) आँखोँ का अंधा था, इसलिए आंखें पाने की उम्मीद लिए सरदहा गांव समर्थ स्वामीजगजीवन दास के पास आया और समर्थ साई जगजीवनदास से निवेदन किया कि मुझे आंखें प्रदान कीजिए तब समर्थ साई जगजीवन दास जी बोले कि राम-राम किया करो इसी नाम में सब सामर्थ्य है,और अन्य लोगों के साथ उसको भी प्रसाद मिलने लगा,एक दिन वह दरवाजे पर बैठा था कि उसी समय स्वामी जगजीवनदास जू महराज दरवाजे से मकान के अंदर जाने लगे और उस समय उसने आहट पाकर समर्थ स्वामी जी के पैर पकड़ लिए और अपनी आंखें स्वामी जी के चरणों पर रगड़ने लगा तब स्वामी जी ने कहा कि हमारा पैर छोड़ दो इसी तरह राम नाम मजबूती से पकड़ना चाहिए जिससे सभी मनोरथ पूरे होते हैं तब दोनों आंखों के अंधे उस सूर ने कहा महाराज राम जी घट घट में विराजमान है महात्मा और राम में कोई अंतर नहीं है इस कारण मैं आपको नहीं छोडूंगा मुझे जो मजबूती के साथ पकड़ना था उसे पकड़ लिया तब समर्थ साईं जगजीवन दास ने प्रसन्न होकर भगवान से प्रार्थना की और फिर उससे कहा कि आंखें खोलो उसने जैसे ही सिर उठाया और आंखें खोली तब उसकी आंखों में रोशनी आ गई थी तदोपरांत समर्थ स्वामी जी उसके घर गए और वह अहीर सारी उम्र स्वामी जी की चरण सेवा में रहा।
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Thursday, March 28, 2019
कीर्ति गाथा 28
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