卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Wednesday, March 27, 2019

समर्थ साहेब अहलाद दास जी     Photo Galary
          समर्थ साहेब अहलाद दास समर्थ साईं जगजीवन दास साहब के भतीजे थे आपका जन्म घाघरा नदी के किनारे बसे सरदहा  ग्राम में ही हुआ था तथा आपके पिता का नाम पृथ्वी सिंह था आप पढ़े-लिखे नहीं थे किंतु समर्थ साईं की कृपा से आपको अरबी का बहुत अच्छा ज्ञान हो गया था कहते हैं कि एक बार एक पत्र फारसी में आया और उस समय पत्र पढ़ने वाला कोई ना था अतः समर्थ साईं ने वह पत्र आपको पढ़ने के लिए दे दिया किंतु आप भी पढ़े-लिखे ना थे अतः समर्थ साईं ने कहा अहलाद दास पढ़ो और समर्थ साईं की कृपा से फिर आपने वह पत्र पूरा-पूरा पढ़  दिया बाद में आप हिंदी और फारसी आदि के बहुत बड़े विद्धान हो गए एक बार आप को सांप ने डस लिया तथा आपका पूरा शरीर नीला पड़ गया पूरे घर में कोहराम मच गया आपको समर्थ साईं जगजीवन दास के सम्मुख लाया गया तथा आपको देखते ही समर्थ साईं जगजीवन दास ने कहा के इस संसार में आवागमन सिर्फ ईश्वर की इच्छा से ही होता है बिना ईश्वर की इच्छा के अकाल किसी की  मृत्यु नहीं हो सकती अतः सांप का विष सांप में चला जाए समर्थ साईं की कृपा से आप उठ कर बैठ गए |
बादशाह औरंगजेब का शाहीफरमान
सतनाम पंथ प्रवर्तक परम समर्थ स्वामी जगजीवन दास साहब के समय काल में तत्कालीन शासक मुगल बादशाह औरंगजेब ने एक कामिल फकीर मलामत शाह को इरान से हिंदुस्तान बुलवाया। जो साधु संतो और फकीरों की परीक्षा शाही दरबार में लेता था। जिसके लिए वह एक रेशमी चादर हवा में स्थिर कर स्वयं उस पर बैठ जाता था और कहता कि "पहले मेरे बराबर आकर बैठो तो मैं तुमसे चर्चा करूं"। जो इतना नहीं कर पाता, उसने कहता कि तुम और तुम्हारा धर्म झूठा है। उसी समय सैनिकों द्वारा उस व्यक्ति को बंदी बना लिया जाता था। बादशाह औरंगजेब को जब समर्थ स्वामी जगजीवन दास जी की प्रसिद्धि की सूचना मिली, तो उसने स्वामी जी को दिल्ली दरबार में हाजिर होने का हुक्म दिया। स्वामी जी स्वयं ना जाकर अपने प्रिय शिष्य भतीजे अहलाद दास जी को दिल्ली भेजा। अहलाद दास को बादशाह के दरबार में हाजिर किया गया। तो फकीर मलामत शाह उस समय हवा में स्थित रेशमी चादर के ऊपर बैठा था। उसने अहलाद दास जी से कहा कि "यदि तुम हमारे बराबर बैठ सको, तो तुम्हारे पंथ की सच्चाई और सिद्धता को मैं मानूंगा"। यदि तुम ऐसा ना कर सके तो तुम और तुम्हारा पंथ झूठा है। तुम्हारा सिर कलम करवा दिया जाएगा। तब अहलाद दास जी ने मन ही मन में स्वामी जी काे याद करके सहायता करने की प्रार्थना किया। उसी समय वह रेशमी चादर जल गई और मलामत शाह ऊपर से जमीन पर गिर पड़ा। मलामत साह ने बार-बार हवा में चादर फेंकी और बार-बार वह चादर जल उठी। तब मलामत साह परेशान हो अहलाद दास जी से कहा "तुम और तुम्हारा पंथ सच्चा है"। हम दोनो जमीन पर बराबर हैं। यह देख बादशाह औरंगजेब की ओर से शाही फरमान जारी हुआ कि सतनाम पंथ के मानने वालों को कभी सताया नहीं जाएगा। कुछ समय बाद सूफी संत मलामत शाह कोटवाधाम समर्थ स्वामी जगजीवन दास जी की परीक्षा लेने आए और यही के होकर रह गए। यहां से तीन मील पश्चिम - दक्षिण स्थित कस्बा बदोसराय में आपकी समाधि मौजूद है। यह स्थान मलामत शाह तकिया के नाम से जाना जाता है 
साहेब अहलाद दास  बालपन से ही समर्थ साईं के अनन्य भक्त थे आपकी भक्ति मे  इच्छा और रुचि देखकर समर्थ साईं ने आपको मंत्र दीक्षा दिया मंत्र दीक्षा ग्रहण कर आप ने आजीवन ही कोटवा धाम में रहकर समर्थ साईं की सेवा करते हुए नाम साधना में प्रवृत्त रहे आपने परम ब्रह्म को निराकार के अतिरिक्त राम ,करतार, ईश्वर, साईं ,प्रभु आदि नामों से स्मरण किया आपके अनुसार ईश्वर की आराधना में सरलता और सहजता ही मुख्य तत्व है आपके अनुसार ईश्वर को तर्क वितर्क और कुतर्क कर नहीं पाया जा सकता ज्ञानी जन ऐसा करके सिर्फ अपने सिर पर पाप ही  चढ़ाते हैं निर्विकार रहते हुए ईर्ष्या, तृष्णा लोभ आदि से बचते हुए जो सरल और सहज भाव से नाम उपासना करते हैं वही सच्चे संत हैं एक उदाहरण देखें --
सत्य सा वह रूप पार जो ब्रम्ह है।
भक्त भागवत जेहि ध्यावते है।।
सोई दस रूप धरि प्रगट परमात्मा का।
आत्मा राम कहलावते है।।
शिव सत कोटि में मन्त्र राखा।
सोई नाम सतनाम कहि गावते है।।
आह्लाद विवाद करि चतुर नर।
हुज्जती नाहक सिर पाप चढावते है।।
                           (साहेब आह्लाद दास)
आपके अनुसार मान बड़ाई निंदा स्तुति आदि  की परवाह संतो को नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह सब साधना के बाधक तत्व हैं आपकी रचनाओं में शब्दावली, ज्ञान चेतक, गीता बानी, रोवता , झूलना, कवित्त और साखी आदि प्राप्त होते हैं आप की कृतियों में उर्दू अरबी फारसी आदि भाषा के शब्दों का प्रयोग हुआ है किंतु सभी  रचनाओं मे अवधी भाषा  की ही प्रमुखता है समर्थ साई  जगजीवन दास के तप से सरदहा ग्राम फलने --फूलने लगा और लोग अत्यंत अहंकारी हो गए एवं संतों और भक्तों का अपमान करने लगे इस बात से दुखी होकर समर्थ साईं ने यह कहते हुए कि ""सरदहा --नरदहा हो जाएगा ""सरदहा  ग्राम का त्याग कर दिया और कोटवा में आकर तप  करने लगे परिणाम स्वरूप कुछ ही दिनों में सरदहा ग्राम घाघरा नदी में बह गया किंतु साहब अहलाद दास और साहब शोभा दास के  समाधि मंदिर को कोई भी नुकसान नहीं हुआ पिछले 250 वर्षों से यह समाधियां  आज भी लोक कल्याण और नाम उपासना का उपदेश देती हुई सतनाम पंथ के गौरवमयी इतिहास को संजोए हुए हैं

समर्थस्वामी जगजीवन साहब के चार प्रथम शिष्य



समर्थस्वामी जगजीवन साहब के 14 शिष्य (14 गद्दी)


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