卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Wednesday, March 27, 2019

समर्थ साहेब ख्यामदास जी     Photo Galary
          समर्थ साई जगजीवन साहब द्वारा संगठित चार पावे मे चौथा पावा एवं चतुर्थ शिष्य साहब ख्याम दास साहब की समाधि मंदिर मदधनापुर में है। 
यह स्थल साहब ख्याम दास की तपोभूमि है साहब ख्याम दास के विषय मे कुल इतना ही ज्ञात है कि आप कन्नौज जिला के रहने वाले थे और आप कान्यकुब्ज ब्रामहण थे। सत्नाम साहित्य एवं जन श्रुतियों के आधार पर यह विदित हुआ है कि आप के पिता के आप से पहले कोई संतान नहीं थी, आप के माता पिता अपने दैनिक जीवन का पालन करते हुए प्रभु के सुमिरन भजन मे सदैव लीन रहते थे।
एक बार एक संत आप के पिता जी के यहा मेहमान हुए तो संत ने उनके दुख का कारण पूछा उन्होने  बताया कि मेरे कोई संतान नहीं तब उत्तर मे संत ने कहा आपको संतान अवश्य होगी किन्तु पहला पुत्र मुझे देना पड़ेगा यह कह कर वह चले गए। पाँच साल बाद वह संत पुनः आए तो आपके माता पिता से कहा कि आपके और भी संताने हो चुकी हैं अब इस बालक को मुझे दे दीजिए इस बात का आपके माता पिता पर गहरा संताप लगा किन्तु पूर्व मे वचन दे दिये जाने के कारण उन्होने बालक को संत को सौप दिया। संत उठे और उन्होने उसे अपने साथ ले कर चले गए और उस बालक के साथ देश भर मे उन्होने भ्रमण किया।
उन्होने बाल्यकाल से ही बालक ख्याम दास को योग के गूढ रहस्यो की शिक्षा एवं दीक्षा देते हुये कठोर योग एवं तप साधना के लिए मार्ग दिखाया। कुछ समय पश्चात वह भ्रमण करते हुए मधनापुर, हरसकरी बाराबंकी पहुचे और ख्याम दास जो उस समय बाल्यकाल मे थे उन्हे छोड़ कर वह संत विलुप्त हो गए।
साहब ख्याम दास जी ने कठोर तप एवं योग साधना की यहाँ तक कि उन्होने लगभग 13 साल तक अन्न तथा अन्य खाद्य सामाग्री भी त्याग दिया केवल नीम की पत्ती खाकर साधना मे लीन रहे। कठोर तपस्या तथा अन्न परित्याग के कारण आप का शरीर बहुत ही जर्जर हो गया था शरीर पर लेश मात्र मांस के अतिरिक्त कुछ न बचा रह गया था।  अधिक कठोर तपस्या करने के बाद ही आपको आत्म शांति नहीं मिली एक दिन समर्थ साई जगजीवन साहब के बारे मे आपको ज्ञात हुआ तो सरदहा मे जाकर साई जगजीवन साहब का दर्शन किया और अपनी योग तपस्या के बारे मे बताया फिर यह भी कहा कि इतना कुछ कर लेने के बाद भी मुझे आत्म शांति नहीं मिली है।
 समर्थ साई जगजीवन साहब जी ने उन्हे देखते ही पहचान लिया और कहा की आप अनेकों जन्मो मे मेरे साथ रहे हैं अब आपको कठोर साधना करने की कोई जरूरत नहीं और न ही अन्न त्यागने की कोई जरूरत है आपको अति नहीं करनी चाहिए। साहब ख्याम दास जी ने जगजीवन साहब से दीक्षा के  लिए कहा, साहब जगजीवन साहब ने कहा कि आप स्वम ब्रामहण एवं योग तपस्वी हैं आपको दीक्षा कैसे दी जा सकती है। तब ख्याम दास ने कहा कि आप ही ने कहा है कि आप मेरे साथ कई जनमो मे आप रहे हैं तो यह जातिगत भेद भाव कैसा? आप तो पारब्रमह हैं आपको मुझे दीक्षित करना होगा।
साहब जगजीवन साहब ने उन्हे दीक्षित कर भोजन कराने के बाद विदा किया। ख्याम दास साहब अपनी तपोस्थली मधनापुर वापस आ कर साई जगजीवन दास साहब द्वारा बताए गए “सहज सूरत तप” की साधना करने लगे तथा दीक्षा उपरांत कठोर यौगिक क्रियाओ का परित्याग कर दिया।   समर्थ साईं के चरण कमलों में बंदगी करते हुए साहब ख्याम दास जी ने कहा ""मैं तू  हुआ मैं देह  हुआ तू प्राण हुआ अब कोई ना कह सके मैं और हूं तू और है"" कहते हैं ख्याम दास का शरीर तो एकदम ही दुर्बल था किंतु बानी और चेहरे का तेज पुंज ऐसा था कि उसके सामने टिक पाना सामान्य जन के बस की बात ना थी सतनाम दीक्षा के उपरांत ख्याम दास का स्वभाव विनम्र हो गया दीक्षा के उपरांत ख्याम दास जी मदनापुर हर सकरी आकर साधना रत हो गए और आपके सगे भतीजे साहेब पुरई दास ए अहर्निशि आपकी सेवा में लगे रहे एक बार कुछ संत आकर तपोभूमि पर रुकना चाहे  संयोगवश अतिथि भक्तों के सत्कार के लिए कुछ भी नहीं था ऐसे में पूरई  दास की माता ने ख्यामदास  से कर बद्ध  होकर कहना चाहा किंतु मां के मनोभावों को समझ कर तुरंत ही ख्याम दास जी ने कहा ""कपड़ा चुकै  मगहर से आवे जहां कबीर साहब विनत चिकनिया खर्चा चुके कोटवन से आवे जहां गुरु साहेब मोरे हैं धनिया"" स्वामी जी की कृपा से भोजन सामग्री कपड़ा धन सब आने लगा और अनवरत भंडारा होने लगा और कोई भी बिना प्रसाद के वापस ना जाता कहावत है ""हर सकरी मां भक्त जे  आवे बिना प्रसाद लौट नहीं पावै ""
 साहब ख्याम दास साहब उच्च कोटि  के सिद्ध संत हुए आपने “काशी कांड”, “शब्द सागर”,  “ककरहा नामा” नामक ग्रंथो की रचना की जो आद्यत्मिक तथा साधना के दृष्टिकोण से उच्च कोटि  के ग्रंथ हैं आप बाल ब्रांहचारी रहे आपके छोटे भतीजे  पुरई दास भी साथ माधना पुर मे आकर रहने लगे जो ग्रहस्थ थे। पुरई  दास की परंपरा मे उनके वंशज आज भी मधनापुर धाम मे सतनाम का प्रचार प्रसार कर रहे हैं। मधनापुर धाम चारो ओर से जंगलो से घिरा हुआ है तथा एक बरगद का पेड़ आज भी माजूद है जहा बैठ कर आपके द्वारा साधना की गई थी। माधनापुर धाम मे दो सरोवर मौजूद है यह साधना की दृष्टि से बहुत ही उच्च कोटि का स्थान है जहां निरंतर अनहद  सुनाई देती है जो उच्च कोटि  के साधको द्वारा अनुभव की गई है। यह स्थान बाराबंकी जनपद से 45 किलोमीटर तथा कोटवा धाम से 5 किलोमीटर है।

समर्थस्वामी जगजीवन साहब के चार प्रथम शिष्य



समर्थस्वामी जगजीवन साहब के 14 शिष्य (14 गद्दी)


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