समर्थ साहेब नेवल दास जी Photo Galary
सतनामी संप्रदाय के संतों में समर्थ साहेब नेवल दास उच्च कोटि के सिद्ध संत एवं साहित्यकार रहे महंत श्री जगन्नाथ बख्शदास साहेब ने सुखसागर (नेवल दास कृत) की भूमिका में उल्लेख करते हुए आपका जन्म गोंडा जिले में अनुमानत: संवत 1780 में माना है तथा भक्त शिरोमणि हिंदी मासिक पत्रिका अगस्त अट्ठारह सौ अट्ठावन पृष्ठ पांच श्री कृष्ण मुरारी दास ने भी इसे सत्य माना है किंतु संप्रदाय के अंतर्गत आपका जन्म उमापुर नामक ग्राम में माना जाता है यद्यपि आप पढ़े-लिखे नहीं थे किंतु गुरु कृपा से हिंदी संस्कृत में आप पारंगत थेअवधी संत कवियों मे सतनामी संप्रदाय के ध्वज वाहक साहेव नेवल दास का प्रमुख स्थान है । एवं आप श्री जगजीवन दास के प्रधान शिष्यों मे से थे जिन्हें १४ गद्दी मे स्थान मिला । माता पिता के धार्मिक संस्कार श्री नेवल दास मे पूर्णत: ही उतर आये थे और प्रथम गुरू के रूप में माता ने ही भगवत भक्ति् को प्रेरणा दी तथा वह नित्य ही भारत के महा संतो की पावन गाथा रूपी अमृत रस का पान कराती थी अत: श्री नेवल दास का मन ज्ञान, भक्ति एवं, ईश्वर व सन्त कथाओं के रंग मे पूर्णतया रंग गया, आप की कुसाग्र बुद्धि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 12 वर्ष की अवस्था में ही काशी नरेश के यहॉ आयोजित महायज्ञ, एवं ज्ञानयज्ञ प्रतिस्पर्धा (शास्त्रार्थ) मे सभी को परास्त कर प्रथम स्थान से स्वर्ण पदक विजेता बने। और इसी क्रम मे 12-12 वर्षो के अन्त राल पर होने वाले शास्त्रार्थ मे 3 बार विजयी रहें आप संपूर्ण जीवन मे किसी से कभी शास्त्रार्थ मे पराजित नही हुऐं।
आपका नाम यश व कीर्ति विद्धता के मामले मे विशाल थी, सभ्रांत परिवार धन धान्य सम्पन्नता, वैभव एंव प्रभाव शाली वर्चस्व सब तरह से श्रेष्ठ थे इसिलये अहं ने अपने पाश मे बांध लिया। समय पलटा तो मॉ का कहा दोहा सहज ही याद आया
धनमद बलमद राजमद, विद्यामद, बलवान।
जगजीवन दास जेहि नाम मद, दूजा गनै न आन ।।
बस इसी चिन्तन ने आपका समस्त अहं चूर-2 कर दिया अत: आप वास्तविक ईश्वरीय सत्ता की खोज करते-2 तत्कालीन ख्याति लब्ध सन्त श्री उदयरामदास जी के पास पहुचें। उदयराम दास के आग्रह पर नेवलदास को परमभक्त जानकर स्वामी जी ने मंत्र दीक्षा दी, एवं आप हरिभजन मे तल्ली्न हो गये।
प्रयागराज अवतरण
वर्षो उपरांत आपका जाना सैमसी वर्तमान (धर्मेधाम) मे श्री दूलन दास के पास हुआ उस समय प्रयाग राज का मेला चल रहा था लोग झुंड के झुंड दर्शनो के लिये जा रहे थे। आपने श्री दूलन दास के सामने प्रयाग राज की महिमा गान की और साथ चलकर वहां स्नान की इच्छा जताई। श्री दूलनदास ने समझाया वह ईश्वर कन -2 मे घट-2 मे और समस्त जड. चेतन मे व्याप्त है। किन्तु परम ज्ञानी नेवलदास सहज ही कहॉ विश्वास करने वाले थे जब तक स्वयं न देख लेते। अत: अनुनय विनय करने लगे। तब श्री दूलनदास ने मिट्टी का ढेला उठाते हुये कहा ‘यह भी ब्रम्हरूप है यह जहॉ गिरेगा वह भी ब्रम्हरूप है। यदि मेरे समर्थ सद्गुरू की वाणी सत्य है कि ईश्वर घट-2 वासी है। यदि यह सत्य है कि ईश्वर कण-कण मे है तो हे प्रयाग राज मेरा अनुरोध स्वीकार कर अपने भक्तो के उद्धार के लिये यही अवतरित हो’ यह कहकर ढेला सामने ही रख दिया तत्काल ही धरती से तीव्र जलधारा फूट पडी । दूलन दास प्रेम भक्ति , से ओत प्रोत हो गये और श्री नेवलदास के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा ।
नेवल दास की सिद्धि प्राप्ति
तत् पश्चात सन्त् दूलन दास की प्रार्थना से प्रयाग राज ने वहीं रहकर भक्तों का उद्धार व पाप नाश करने का बचन दिया एवं वह कुण्ड कर्म दही के नाम से बिख्यात हुआ पुन: कर्म दही मे दोनो सन्तो ने आनन्द पूर्वक स्नान कर खडे ही हुऐ कि अचानक समर्थ दूलन दास अंजली मे भर भर कर जल उलचने लगे, नेवल दास के पूछने पर दूलन दास ने बताया कि आपके यहॉ आग लगी है वही बुझा रहा हॅू सत्यू जानने के लिये नेवलदास घर आये जो 100 किलो मीटर से भी अधिक दूर था घटना को सत्य पाया अब उन्हे स्वयं पर अधिक ग्लानि होने लगी आपने तत्काल जाकर कोटवन मे समर्थ जगजीवन दास से प्रार्थना की कि क्या आपने बाबा दूलन दास को और मुझे अलग -2 मंत्र दिया है क्योकि बाबा दूलन दास के पास सभी सिद्धियां है पर मै अभी भी अन्ध कार मे हॅू मुझ पर कृपा कीजिये। समर्थ ने हंसकर कहा दोनेा का एक ही मंत्र है वही सबका मंत्र है। तल्लीनता से करो तब श्री नेवलदास ने तालाब मे तखत डालकर तीन दिन रात निरंतर जाप किया तथा सिद्धियां प्रत्यक्ष हो गई। सिद्धि प्राप्ति के पश्चात बाबा नेवल दास के मन मे महा वैराग्य् उत्पन्न हुआ तथा आप ईश्वरीय आनंद मे मग्न हो गोमती किनारे कठिन तप करने चले गये आप समर्थ साई जगजीवन दास जू साहब से गुरु मंत्र प्राप्त कर साधना में प्रवृत्त हुए और आपने गृहस्थ जीवन यापन किया था आपके पुत्री थी जिसका विवाह भारद्वाज गोत्रीय अम्बरदास जी के साथ हुआ था जिनके वंशज आज भी उमापुर गद्दी पर विराजमान हैं कुछ समय तक बाराबंकी सुल्तानपुर जिले की सीमा पर स्थित गोमती नदी के किनारे रेछ घाट में रहकर तपस्या की थी किंतु प्रतिकूल वातावरण के कारण यहां से आकर सुल्तानपुर जिले के दक्षिण दिशा मे धनेशा ग्राम में एक बट पेड़ के नीचे कुटी बनाकर नाम उपासना में रत हुए किंतु धनेशा के रहने वालों के व्यवहार के कारण इस स्थान को भी छोड़ कर आजीवन उमापुर में अपने निवास किया आप सदैव ही एकांत में रह कर दिन रात अखंड भजन करते थे उठते बैठते सोते जागते अजपा जाप में लीन रहते थे वर्तमान में आप का समाधि स्थल उमापुर में है जो हरचंदपुर गद्दी के काफी समीप है |
समर्थस्वामी जगजीवन साहब के चार प्रथम शिष्य
3-समर्थसाहब देवीदास पुरवाधाम जिला बाराबंकी(उत्तर प्रदेश)।
4-समर्थसाहब ख्याम दास मदनापुर जिला बाराबंकी(उत्तर प्रदेश)। समर्थस्वामी जगजीवन साहब के 14 शिष्य (14 गद्दी) |
Wednesday, April 10, 2019
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