卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Tuesday, March 26, 2019

समर्थ साहेब कायम दास जी     Photo Galary
          समर्थ साहेब कायम दास का जन्म रसूलपुर बाराबंकी जिले में हुआ आपका जन्म पठानकुल में हुआ था जैसा कि कहा जाता है ""कायम दास मुगल पठाना  बसि रसूलपुर सब जग जाना"" अतः आप बचपन से ही सर्व धर्म समभाव की भावना रखते थेआप किसी भी धर्म सम्मेलन में अवश्य पहुंचते थे और विशुद्ध ईश्वरीय सत्ता की प्राप्ति व दर्शनों की जिज्ञासा आप में सदैव बनी रहती थी  समर्थ साईं साहेब जगजीवन दास की कीर्ति चारों ओर फैलते देख आपने सोचा क्यों ना चलकर परीक्षा की जाए अत: आप अभरन सरोवर के किनारे आकर बैठ गए और भोजन पकाने हेतु मुर्गा काटने लगे सूचना समर्थ साईं तक पहुंची तो समर्थसाई  जगजीवनदास आए और बोले पुत्र महज ज़िह्वा के स्वाद के लिए जीव हत्या करना उचित नहीं यदि जीवन नहीं दे सकते तो प्राण लेने का अधिकार कैसे मिला तब कायमदास ने कहा जीवन मरण यह सब तो ईश्वर के हाथ में है बगैर उसके हुकुम के पत्ता भी नहीं हिलता परंतु हमने तो बचपन से यही भोजन किया है यदि आप इसे जीवनदान दे सके तो मैं मान जाऊंगा कि आप और आपके सिद्धांत सच्चे हैं करुणित समर्थ साईं ने कायम दास के उस पात्र (जिसमें मुर्गे के कटे हुए टुकड़े रखे थे )की  ओर दृष्टिपात किया मुर्गा जीवित होकर चलने लगा तत्पश्चात कायम दास ने विनीत  भाव से ईश्वर के बारे में जानने की इच्छा प्रकट की और समर्थ साई जगजीवन दास के वचनों से संतुष्ट होकर चरणों में लेट गए और नाम दीक्षा हेतु प्रार्थना करने लगे समर्थ साईं ने उन्हें हृदय से लगाते हुए नाम दीक्षा दी और गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए साधना रत रहने का आदेश दिया फलत: है आप रसूलपुर अपने निवास स्थान पर आकर साधना करने लगे किंतु मुसलमान होने के कारण आपको आपके समाज व परिवार के विरोधों का भयंकर सामना करना पड़ा लोग तरह तरह से आप को प्रताड़ित करते पर आप टस से मस ना हुए और कोई दाल ना गलती देख परिवार वालों ने मोहल्ले और गांव वालों के कहने से आपको पकी हुई मछली का भोजन परोसा तो आपने भोजन करने से मना कर दिया इस पर परिवार वालों ने कहा या तो मछली खाओ या फिर इसे जिंदा कर दो तो हम लोग भी मान लेंगे और आपको आपके साईं को स्वीकार कर लेंगे परिवारिक प्रताड़ना से आहत साहेब कायम दास ने पानी से भरी बाल्टी में मछलियों को डाल दिया और कपड़े से ढक दिया तथा समर्थ साई से अनुरोध किया कि हे समर्थ साईं मेरी लाज रख लेना और जब कपड़ा हटाया गया तो सभी मछलियां जीवित हो गई थी समर्थ साईं की ऐसी कृपा और अलौकिक लीला देख परिवार वालों ने अपने हठ  और विरोध का त्याग किया और समर्थ साहेब कायम दास की धर्मपत्नी ने भी नाम दीक्षा लेकर कठोर नाम उपासना शुरू की||
          समर्थसाहब कायमदास जी समर्थस्वामी जगजीवन साहब के शिष्य एवं चौदह गद्दी में से एक थे, आप नामोपासक एवं महान सिद्ध संत थे आपकी तपोस्थली बाराबंकी के रसूल पुर गांव में कल्याणी नदी के किनारे स्थित है,आपकी तपोस्थली पर दर्शनार्थ जाने के लिए लखनऊ फैजाबाद रोड पर दोनों तरफ से लगभग मध्यान्तर दूरी पर स्थापित मवई चौराहा से लगभग आठ किलोमीटर दक्षिण दिशा की मवई बाजार क्रास करके सुबेहा मार्ग पर लगभग दो किलोमीटर जाकर कल्याणी नदी पार का पुल पार करते ही सामने रसूल पुर गांव में आपकी समाधि स्थल के दिव्य दर्शन किया जा सकता है।



समर्थस्वामी जगजीवन साहब के चार प्रथम शिष्य



समर्थस्वामी जगजीवन साहब के 14 शिष्य (14 गद्दी)


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