卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Wednesday, March 27, 2019

समर्थ साहेब दूलन दास जी     Photo Galary
          सतनाम संप्रदाय के प्रवर्तक श्री समर्थ साहेब जगजीवन दास के परम प्रिय शिष्य  व सतनाम सिरमौर के श्री पद से विभूषित समर्थ संत साहेब श्री दूलन दास जी का जन्म संवत 1717 रायबरेली  जिला अंतर्गत तहसील महाराजगंज परगना सेमरौता ग्राम मुरैनी के निकट तदीपुर में हुआ था जिसे तबीयतपुर या ताजुद्दीन भी कहते हैं समर्थ साहेब दूलन दास जी के पिता का नाम श्री रायसिंह था  जो सोमवंशी क्षत्रिय कुल के  उच्च एवं कुलीन परिवार के जमींदार थे तथा आप के चार भाई थे सबसे बड़े भाई का नाम (1) श्री कौशल सिंह (2) श्री प्रीतम सिंह (3) भीष्म सिंह (4) समर्थ साहेब दूलन दास 
 निर्गुण पंथी संतों की भांति आपकी भी स्कूली शिक्षा दीक्षा नहीं हुई थी परंतु स्वाध्याय से आपको हिंदी का अति विशिष्ट ज्ञान प्राप्त था आपके साहित्य में भी यह  झलक देखने को मिलती है जैसे कि आप के पदों छन्दो व भजनों में रागों का विशेष रूप से उल्लेख है जैसे राग भैरवी राग बसंती जय-जय वंती आदि  अत्यधिक रागों का समावेश है
सबसे छोटे भाई थे बड़े भाई कौशल सिंह तिलोई नरेश के यहां उच्च पद पर कार्यरत थे कौशल सिंह की इमानदारी और कार्यकुशलता से प्रसन्न  तिलोई नरेश ने 100 बीघा जमीन दान की थी जहां पर आज घर्में धाम स्थित है युवावस्था में साहेब दूलन दास कुंडा नरेश के यहां उच्च पदासीन  एवं  राजा के विश्वसनीय सदस्यों में परिवार की भांति रहा करते थे एक बार शत्रु राजा के आक्रमण करने पर गोंडा नरेश को जान बचाने के लिए अन्यत्र शरण लेनी पड़ी राजमहल को शत्रु सेना  ने घेर लिया बचने का कोई रास्ता ना देख महारानी ने दूलन दास जी  से प्रार्थना की और कहा अब आप ही कुछ कर सकते हैं अन्यथा मुझे जौहर के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नजर नहीं आ रहा है अतः साहेब दूलन दास गुप्त मार्ग से महारानी को लेकर महल से निकले पर मार्ग में सरयू नदी उफान पर थी और कोई नाव  नही  थी महारानी ने कहा अब तो शत्रु सेना अवश्य ही पीछा करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लेगी परंतु साहेब दूलन दास ने सरयू नदी से प्रार्थना की और तक्षण ही नदी का पानी सूख गया महारानी 6 माह से अधिक सैम्बसी  में निवास कर सुरक्षित रही और युद्ध विराम के बाद वापस जाकर महाराज को दूलन दास की अध्यात्मिक शक्तियों व सिद्धियों का गुणगान महाराज से किया
आप के दीक्षा गुरु समर्थ साहेब जगजीवन दास जी थे दीक्षा उपरांत आप अधिक समय तक कोटवा धाम में रहकर गुरु सेवा कर साधना रत रहे किंतु कालांतर में गुरु की आज्ञा से तिलोई के निकट मोहनगंज के समीप धर्मे धाम में रहकर आजीवन साधना रत रहे आप बहुत ही उच्च कोटि के नामों पासक  संत रहे आपने गुरु के आदेश से अहं भावना का पूरी तरह से त्याग  कर दिया था यहां तक कि आप ने आदेश दिया था कि आपके सतलोक लीन होने के पश्चात भी आप की समाधि मंदिर में गुंबद  ना बनाया जाए क्योंकि गुंबद भी  (ऊंचाई ) अर्थात अहं का ही प्रतीक है तथा गुरु के आदेश के कारण आपने जब एक बार मस्तक नीचे किया तो पूरे जीवन काल में सर भी ऊपर ना उठाया यहां तक की गर्दन  की हड्डी भी तीन-चार इंच ऊपर उठ गई थी आपके अनेको शिष्यों में पांच प्रमुख शिष्यों का नाम आता है 1)श्री साहेब सिद्धा दास (2) श्री साहेब तोमर दास  (3)श्री साहेब ढ़ाकू दास (4) श्री साहेब घासीदास (5)अल्प दास  |आप की महान साहित्यिक रचनाओं में दोहावली, शब्दावली ,भ्रमविनाश, निर्गुण ब्याह विधान, गंगा अष्टक ,महावीर स्तुति आदि आध्यात्मिक और धार्मिक रचनाएं हैं आप पूर्णतया सामाजिक पाखंड के विरुद्ध थे एवं जातिगत भेदभाव से पूर्णतया परे रहे थे||  साधना स्थली पर तप  करते हुए 118 वर्ष की आयु में संवत 1835 मे आप सतलोक लीन हुए| आपने  आजीवन   दींन  दुखियों  की सेवा  की आपकी  छत्रछाया  मे  लूले लंगडे  कोढ़ी   अंधे सब  ठीक हो जाया करते  हैं धर्मे धाम से 1 किलोमीटर की दूरी पर कर्म दही नाम का एक सरोवर है ऐसी मान्यता है कि जीवन में एक बार भी स्नान करने से सभी पाप कर्मों का दहन हो जाता है धर्मे धाम के बारे में लोकोक्ति है कि[ जो गया नहीं धर्मे  तो का जग के भर्मे  ]धर्मे धाम में प्रतिमाह पूर्णिमा को मेला लगता है एवं कार्तिक पूर्णिमा को एक माह का विशेष मेला लगता है जिसमें दूर दूर के श्रद्धालु दर्शन कर लाभान्वित होते हैं मंदिर में विभूति देने की परंपरा है एवं भक्त प्रसाद व फूल माला चद्दर आदि चढ़ाते हैं वर्तमान समय में यह धाम राठौर साहब और भदोरिया जी की देखरेख में संचालित है यह स्थान अब अमेठी जिला में पड़ता है जो तिलोई के नजदीक स्थित मोहनगंज चौराहे से पूर्व दिशा में लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर है

समर्थस्वामी जगजीवन साहब के चार प्रथम शिष्य



समर्थस्वामी जगजीवन साहब के 14 शिष्य (14 गद्दी)




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