卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Friday, April 12, 2019

समर्थ साहेब मेडन दास जी     Photo Galary
          मेडन दास बहुत ही शूरवीर योद्धा थे यथा नामे  तथा गुणे  की भांति आपका शरीर भी बड़ा हृष्ट  व पुष्ट  तथा मजबूत था एक बार में आप 16 किलो से अधिक भोजन करते थे युवावस्था में आपको पहलवानी का शौक था तथा आप राजा की सेना में फौजदार नियुक्त हुए एक बार राज्य पर विरोधी राजा ने आक्रमण किया बड़ी सेना देखकर सभी गांव वाले भयभीत हुए तब आप ने दोनों हाथ में तलवार लेकर भयंकर युद्ध किया जिससे शत्रु सेना के पैर उखड़ गए तदुपरांत आपके सहयोग के लिए बाकी सेना भी आ गई और इस तरह शत्रु सेना भाग खड़ी हुई किंतु घंटों युद्ध करने की वजह से आप थक भी गए थे और प्यास  से व्याकुल होकर पानी पानी की आवाज दे रहे थे प्रसन्न होकर गांव वालों ने आपके लिए शरबत का इंतजाम किया कहते हैं प्यास से व्याकुल होने के कारण आप कई घडे  शरबत पी गए किंतु भयंकर गर्मी युद्ध की थकान आदि के कारण आप मूर्छित हो गए शीतल जल से स्नान आदि के बाद आप पुनः सामान्य अवस्था में वापस आए समर्थ साईं जगजीवन दास जी की  कीर्ति सुनकर आप उनके दर्शनों हेतु आये  और जब सेवादारों ने आप से भोजन करने का अनुरोध किया तो अधिक खुराक के कारण संकोच करते हुए आपने यह कहकर भोजन करने से मना कर दिया कि मुझे राजा ही भोजन करा सकते हैं जितने भोजन में मैं यहां भोजन करूंगा इतने में तो 50 भक्त भोजन कर लेंगे तब सेवादारों ने जा कर यह बात समर्थ साईं जगजीवन दास जी को बताई तब समर्थ  साईं जगजीवन दास जी ने एक मुट्ठी चावल देते हुए कहा के इसे ले जाकर मेडन दास को खिला दो चावल खाते ही मेडन दास का पेट भर गया और घूंट भर पानी पीने की भी जगह ना बची  तो मेडन दास  बहुत ही आश्चर्य चकित हुए और समर्थ  साईं जगजीवन दास जी की चरण वंदना करने लगे तब समर्थ साई  जगजीवन दास जी ने कहा कि  नाम की  सामर्थ्य ही ऐसी है कि समस्त क्षुधा का नाश कर तृप्त करने वाली है नाम रस की भूख बढ़ा लो जीवन भर तृप्त रहोगे तब से मेडन  दास समर्थ  साईं जगजीवन दास जी के भक्त हो गए क्षुधा जाती रही स्वाद के प्रति आसक्ति जाती रही और मेडन  दास नाम दीक्षा लेकर नाम जप में लीन रहने लगे अपने महान भक्ति व नामोपासना के कारण आपको 14 गद्दी में स्थान मिला वर्तमान में आप का समाधि स्थल ग्राम अटवां बाराबंकी जिले में है

समर्थस्वामी जगजीवन साहब के चार प्रथम शिष्य



समर्थस्वामी जगजीवन साहब के 14 शिष्य (14 गद्दी)


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