समर्थ साहेब भवानी दास जी Photo Galary
समर्थ साहेब भवानी दास का जन्म संबत 1731 भाद्रपद शुक्ला एकादशी को हुआ था पिता श्री मरजाद सिंह उत्तम क्षत्रिय कुल के बहुत ही धार्मिक व सरल स्वभाव के थे एवं माता का नाम श्रीमती कुंवरानी देवी था आप बाराबंकी जिले के बहरेला नामक गांव के निवासी थे समर्थ साई जगजीवन दास से नाम दीक्षा लेने के उपरांत आप काफी समय तक समर्थ साई जगजीवन दास जी के साथ रहे और समर्थ साहेब कायमदास जू को नाम दीक्षा दिलाने में भी सहयोगी रहे कहते हैं यदि स्वभाव में निष्कपटता ,निष्छलता हो तो कभी-कभी अख्खडपन का रूप ले लेती है परंतु समर्थ साहेब भवानी दास का स्वभाव पूर्णतया निश्चल निष्कपट और निर्दोष होते हुए भी बालकों जैसा सरल था और आपको बच्चे और कुत्ते बहुत ही प्रिय थे सामान्य रूप से आप एकांत वासी रहते हुए जंगल में अजपा जाप में लीन रहते थे किंतु बालकों के साथ खेलना और बातें करना भी आपको बहुत प्रिय था मोह माया मान अभिमान आप में ना के बराबर था स्वांस प्रस्वांस में अजपा जाप सिद्ध होने के कारण एवं विकार रहित निर्मल ज्ञान से युक्त होने के कारण बहुत से संत आपको परमहंस तथा एकांत में रहकर कठिन तप करने के कारण धूप शीत वर्षा आदि सहते हुए कठिन तप करने के कारण आपको जड़ भरत के नाम से भी पुकारा जाने लगा तथा महा योगियों की भांति पृथ्वी को माता एवं आकाश को पिता समझ कर धूप सीत वर्षा आदि सहन करते हुए और उसी ईश्वरीय रचना और कृतियों में प्रसन्न रहते हुए अजपा जाप में लीन रहते थे सतलोक गमन के इतने वर्षों बाद भी आपके समाधि स्थान पर समाधि मंडप नहीं बन पाया जितनी बार बनाने की कोशिश की जाती है या तो उस पर रुकावट लग जाती है या तो बनाया हुआ मंडप आश्चर्यजनक रूप से गिर जाता है बहरेला निवासी श्री रतीमुल रहमान नाम के व्यक्ति को रात में भेड़ियों ने दबोच लिया वह जब अपने खलिहान में रखी हुई फसलों की रखवाली करने के लिए रात में लेटा हुआ था कोई सहारा और आश्रय ना देख रतीमुल रहमान ने समर्थ साहेब भवानी दास को पुकारा रती मुल रहमान बताते थे कि बाबा सैल्ही टोपी पहने और हाथ में डंडा लिए हुए प्रकट हुए और भेड़िए को मार भगाया रतीमुल रहमान अभी तक जिंदा थे वर्ष 2010 के आसपास दिवंगत हुए उनकी गर्दन पर भेड़िये के दांतों के निशान मृत्यु पर्यंत मौजूद रहे समर्थ साहेब भवानी दास की समाधि पर दर्शन करने गए कुछ श्रद्धालु भक्तों ने कुत्तों को डांट कर भगा दिया क्योंकि समाधि के आस-पास कुत्ते लेटे रहते हैं तो समर्थ साहेब भवानी दास ने भक्तों को स्वप्न में दर्शन देकर कुत्तों को ना डांटने के लिए और साथ ही साथ संसार के समस्त प्राणी एवं जीवो पर दया करने के लिए भक्तों को उपदेश दिया वर्तमान में आप का समाधि स्थल बहरेला में है और आप जैसे महान नामोंपासक की ही कृपा है कि बहरेला में आज तक कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा कभी नहीं आती
छप्पय-
""परमहंस पद लीन्ह भवानीदास अनोखा।
किहेव निरंतर भजन परा नहि कबहुँ धोखा।।
खेलत लरिकन साथ मनहुँ कोऊ महा नदाना।
जोगय आपन मर्म भेद जग नेक न जाना।।
बहिरेला मा बास करि जनम लियो क्षत्री भवन।
जगजीवन समरथ धनी पाईन्ही कीन्हेव गवन।।
पिता नाम मरजाद सिंह, माता कुंवरानी।
भादौ उजरी एकादसी का प्रगटे हम मानी।।
सत्ति नाम धुनि श्रवन सुनि अपने देसा।
संवत सत्रह सौ इकतीस का राख्यो भेषा।।""
वर्ष 2018 में हरचंदपुर गद्दी के महंत साहेब श्री अशोक दास जी ने सैकड़ों भक्तों के सहयोग से 18 दिनों के कठिन परिश्रम के उपरांत भवानी दास बहरेला के समाधि स्थल में चारों ओर से बाउंड्री का निर्माण कराया |
समर्थस्वामी जगजीवन साहब के चार प्रथम शिष्य
3-समर्थसाहब देवीदास पुरवाधाम जिला बाराबंकी(उत्तर प्रदेश)।
4-समर्थसाहब ख्याम दास मदनापुर जिला बाराबंकी(उत्तर प्रदेश)। समर्थस्वामी जगजीवन साहब के 14 शिष्य (14 गद्दी) |
Friday, April 12, 2019
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