जब समर्थ साईं जगजीवन दास जी का सातवां वर्ष चल रहा था और ध्यान चबूतरे पर बैठकर समर्थ साई जगजीवन दास जी एकाक्षरी मंत्र का जाप कर रहे थे कि अकस्मात आकाश मार्ग में देखा कि योगीराज श्री विश्वेश्वर पुरी जी चले आ रहे हैं, और देखते ही देखते उनके दरवाजे पर पहुंच गए,पिता ठाकुर गंगाराम जी ने उनको सिद्ध पुरुष एवं समर्थ संत जानकर आदर से बैठाया और थोड़ी देर में वहां बहुत लोग जमा हो गए, तभी किसी ने समर्थ साई जगजीवन दास जी का जिक्र किया तो श्री विश्वेश्वर पुरी जी बोले कि वह तो हमारे चेले हैं ,और समर्थ साई जगजीवन दास जी की तरफ देख कर बोले कि क्यों इतना पाखंड बढ़ाया, तभी समर्थ साई जगजीवन दास जी ने धनुष बाण से एक तोता मारा और वह तोता आकर विश्वेश्वर पुरी जी के सामने गिर पड़ा ,और तड़पने लगा ,इससे गुरु विश्वेश्वर पुरी जी नाराज हो गए और कहा कि यह सन्यास का धर्म कर्म नहीं है ,समस्त चराचर में ब्रह्म का रूप देखना, सतोगुण व्रत रखना और सब जीवो पर दया रखना चाहिए,जानवर पर बाण चलाना पाप है, तब समर्थ साई जगजीवन दास जी ने अपना स्थान छोड़कर श्री विशेसरपुरी जी के पास पहुंचे और कहा महाराज अगर यह धर्म पाखंड है तो धर्म किसे कहना चाहिए ,कहते-कहते समर्थ साईं जगजीवन दास जी विश्वेश्वर पुरी जी के सामने नतमस्तक हो गए ,इसके बाद श्री विशेसर पुरी जी बहुत प्रसन्न हुए और समर्थ साई जग जीवन दास जी को गले से लगा कर अपने पास बिठाया ,उसी क्षण वह तोता पंख फड़फड़ा कर उड़ गया और समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा कि कृपा कर आप मुझको ज्ञान उपदेश दीजिए ,जिससे लोक परलोक बने ,तब श्री विश्वेश्वर पुरी जी ने कहा तुम्हारा ज्ञान बहुत उत्तम है, और जो कोई तुम्हारे इस पंथ में आएगा उसका तरण तारण हो जाएगा ।और अपना अचला देकर जो कुछ गुप्त बातें थी पंथ के बारे में बताई ,और फिरअंतर्ध्यान हो गए।।
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Friday, April 5, 2019
कीर्ति गाथा 9
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