एक बार पाँच बैरागी साधू संत समर्थ साई जगजीवन दास जी के पास आए और समर्थ साई जगजीवन दास जी से निवेदन करने लगे कि हमको जगन्नाथ जी के दर्शन करने की अभिलाषा है और हम लोगों ने विचार किया है कि यदि आप के साथ चले तो दर्शन आसानी से हो जाएगा तब समर्थ साई जगजीवन दास जी ने कहा तुम लोग ज्ञानी और त्यागी हो तुम लोगों को दर्शन मिलना सुलभ है और हम गृहस्थ हैं हम कैसे दर्शन पाएंगे और यह भी सुना है कि वहां पर मार भी पड़ती है,और यह सब सांसारिक मर्यादा से बाहर हम को सहन नहीं होगा इसलिए तुम लोग जाओ लेकिन उन लोगों ने कहा कि आपके बिना हम एक कदम भी नहीं चलेंगे और वह वहीं बैठ गए जब समर्थ साई जगजीवन दास ने देखा कि यह लोग नहीं मानेंगे तो कहा कि हम तुम्हारे साथ चलेंगे किंतु हमारी एक शर्त है कि हम राह में सुबह शाम एक एक बार ही मिलेंगे, इस तरह फिर साथ ना होगा तब वह बैरागी संत बोले की कोई बात नहीं है इसी प्रकार साथ चलेंगे वह लोग स्वामीजी के साथ जगन्नाथपुरी पहुंचे वहाँ दर्शन के वक्त ऐसी मार पड़ने लगी कि वैरागी संत लोग सहन ना कर सके और मंदिर के बाहर जहां बैठे थे वही पाँच दिन तक पड़े रहे ,एक रात जगन्नाथ जी ने पुजारियों को स्वप्न में दर्शन देकर आज्ञा दी कि हमारे दर्शन के हेतु श्री जगजीवनदास जो बाहर ठहरे हुए हैं उनको सबसे पहले लेकर आओ तब स्वामी जी बैरागी सहित मंदिर में गए और वहां जगन्नाथ जी के प्रत्यक्ष दर्शन हुए और अति प्रसन्नता के साथ अपने स्थान पर वापस आए तथा बैरागी लोग प्रसन्नता पूर्वक जयकारा करते अपने-अपने स्थान को चले गए। (कीरति संख्या 14,संकलित अंशकीरत सागर )
|
Wednesday, March 27, 2019
कीर्ति गाथा 14
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment