एक बार एक सिद्ध महात्मा देशाटन करते करते सरदहा गांव में आए और अभरनकुंड के निकट ठहरे ,उन का नियम था कि पूजन हेतु सायंकाल से बैठ जाते और प्रातः काल तक बैठे रहते उनके सम्मुख एक ज्योतिपुंज रात्रि भर दिखाई देती थी उन्होंने स्वामी जी की कीर्ति सुनकर उन्हें बुलाया किंतु समर्थ साईं जगजीवन दास उनसे मिलने ना गए और कहलाया कि उन्हें स्वयं आना चाहिए यह सुनकर वह महात्मा बहुत ही क्रोधित हुए और कहा कि यदि समर्थ श्री जगजीवन दास ना आएंगे तो उनका समस्त गांव अग्नि ज्वाला में भस्म कर डालूंगा तब समर्थ जगजीवन दास ने कहा यह तो परंपरा की बात है कि जो कोई जहां भी जाता है वहां के रहने वाले के पास जाकर मिलता है क्योंकि मिलने की इच्छा आने वाले को होती है और यदि आप इसे नहीं मानते हैं और आप गांव वालों को जलाने की इच्छा रखते हैं तो हम आप को रोकते नहीं हैं जैसे ही यह उत्तर महात्मा जी ने सुना क्रोध में आकर अग्नि ज्वाला प्रकट कर दी जिससे गांव के चारों और आग ही आग लग गई गांव वाले डर कर इधर-उधर भागने लगे तब समर्थ साईं जगजीवन दास ने समझाया सत्य नाम का सुमिरन करो आग नहीं जला पाएगी और आकाश की ओर देखा तब जोरों से वर्षा प्रारंभ हो गई और आग बुझ गई महात्मा जी को ऐसा प्रतीत हुआ कि वह स्वयं ही पानी में बहे जा रहे हैं तब अभरन कुंड के पास से उठकर समर्थ साईं जगजीवन दासजी के पास आए और चरणों में गिरकर प्रार्थना की कि मेरा अपराध क्षमा कीजिए तब जाकर पानी बरसना बंद हुआ और समर्थजगजीवन दास जी ने शब्द गाया
""बौरी जामा फिर ना जाना को तुम अहौ कहां ते आए ,समझ ना देखो ग्याना वह घर कहां जहां रहे वासा , कहंवा कियो पयाना दिन दुइ चार यहां को रहना, अंत कहां को जाना पाप पुन्य की हाट लगी है ,सौदा कर मनमाना होइहै कूच ऊंच यह जानो ,काहे भूल जवाना जो जग आयो सो सब जायो, सबका होय चलाना कोई टूट कोई फूट मरत है ,कोई पहुंचे अस्थाना अबहूँ चेत सुधार ये बंदे, चूका सो पछताना जगजीवन सतगुरु के चरनन ,गहुमन चरन उर आना""" और सिद्ध महात्मा जी से कहा कि सत्य नाम का सुमिरन करना यही सब सिद्धियों की जड़ है उसका सुमिरन किया करो और उपदेश देकर विदा कर दिया।। |
कीर्ति गाथाएं
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Wednesday, March 27, 2019
कीर्ति गाथा 21
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