एक बार समर्थ साई जगजीवनदासजी बहुत प्रसन्न बैठे थे उसी समय समर्थ साई जगजीवनदासजी के पुत्र अनंत दास जी आ गए तब समर्थ साई जगजीवनदासजी ने उनसे कहा कि राज्य करने की इच्छा हो तो मांग लो किंतु अनंत दास जी इस बात पर कुछ ना बोले तब स्वामी जी ने उनसे पुनःयही प्रश्न किया किंतु अनंत दास जी ने कोई प्रतिउत्तर नहीं दिया तब स्वामी जी के इन शब्दों का अर्थ ना समझ पाने के कारण समर्थ साई जगजीवनदासजी के भक्त दलभंजन ने हाथ जोड़कर समर्थ साई जगजीवनदास जी से कहा कि मेरी गलती क्षमा हो तो मैं कुछ विनती करना चाहता हूं कि आप अनंत दास जी को राज्य देने की बात कह रहे हैं किंतु मुझे यहां पर तो ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं देता है तब अनंत दास जी किस प्रकार राज्य करेंगे उस समय समर्थ साईं जगजीवन दास ने भक्त दल भंजन को आकाश मार्ग दिखलाया वहां उन्हें हजारों पैदल सवार पालकी घोड़े हाथी रथ और अन्य शाही सामान तथा दिल्ली शहर का फाटक दिखाई पड़ा तब भक्त दल भंजन ने कहा कि हां अब मुझे दिखाई पड़ता है तब स्वामी जी ने कहा कि यही सब संपत्ति मुझे देने का ईश्वरीय आदेश हुआ था पर जब अनंत दास जी ने मना कर दिया और कोई इच्छा न प्रकट की तब यह सब किसी और को दे दिया।।
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Wednesday, March 27, 2019
कीर्ति गाथा 19
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