सरदहा घाट के निकट जंगल में एक शेर रहता था मेले में हर तरफ से लोग आते थे किंतु यह भय बना रहता था कि शेर मार डालेगा एक बार समर्थ साई जग जीवन दास जी से लोगों ने विनती की कि महाराज इस जंगल में जो शेर रहता है उसकी दहाड़ और गर्जना सुनकर भगदड़ मच जाती है और मेले मे आने वाले लोग बड़ा दुख पाते हैं उस समय मंगलदास मस्ताने वहीँ उपस्थित थे उन्हें समर्थ साई जगजीवनदास जी ने आज्ञा दी कि शेर को यहां से दूर भगा कर आओ मंगलदास उठे और जंगल से उस शेर को भगा आए फिर समर्थ साई जगजीवनदास ने आदेश दिया कि शेर जहां रहता है वहीं जाकर रहा करो उस दिन से मंगलदास वही जंगल में निवास करने लगे और मेला वालों का डर दूर हो गया अचानक एक दिन बहुत दिनों के बाद फिर उसी जगह पर शेर आकर फिर से गरजने लगा मंगल दास ने कूदकर शेर की सवारी कर ली और जंगल में खूब दौड़ाया यह हाल देखने वाले लोगों ने स्वामी जी से कहा कि आज वही शेर फिर जंगल में आया और मंगल दास उस पर कूद कर बैठ गए और थोड़ी देर तक शेर मंगलदास को चढ़ाए जंगल में इधर उधर दौड़ा किया किंतु मालूम नहीं कहां चला गया अब डर है कि शेर मंगलदास को खा न जाए तब समर्थ साईं जगजीवन दास ने कहा कि मंगलदास को शेर नहीं खा सकता वह मस्ताने हैं आप लोग कुछ भी चिंता ना करो वह जिंदा है और शेर को बहुत दूर पहुंचा कर ही लौटेंगे तीसरे दिन जब मंगल दास वापस आए और स्वामी जी को प्रणाम कर कहा कि शेर को बहुत दूर उसकी मांद में बैठा कर आया हूं अब वह यहां नहीं आएगा अब मुझे क्या हुक्म है तब समर्थ साई जगजीवनदास जी ने कहा कि जंगल में जहां शेर रहता है वहीं रहा करो मंगल दास ने वहां से प्रस्थान कर समर्थ श्री जगजीवन दास के आदेशानुसार वहीं निवास किया जहां शेर रहता था, साहेब मंगलदास मस्ताने जाति के मुसलमान थे किन्तु ईश्वर में अटूट श्रद्धा और स्वामी जी के प्रतिअपूर्व विश्वास रखते थे ।।
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कीर्ति गाथाएं
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Wednesday, March 27, 2019
कीर्ति गाथा 18
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