एक कबीरपंथी साधु प्रत्येक तीसरे वर्ष उड़ीसा के पूरी जगन्नाथ जी के दर्शन हेतु पुरी धाम जाते थे और बहुत दिनों तक यह नियम उन्होंने पूरा किया पर जब वह वृद्ध हो गए और चलने में अक्षम हो गए किंतु फिर भी उनका आज भी संकल्प था कि यह नियम ना टूटे तब श्री जगन्नाथ जी ने दर्शन देकर कहा कि तुम हमारे बहुत बड़े भक्त हो इतनी दूर चल कर नंगे पांव ना आया करो श्री अयोध्या जी के पश्चिम में सरदहा गांव में चंद्रवंशी ठाकुर गंगाराम जी के घर मेरा अवतार जगजीवन दास के नाम से प्रसिद्ध है वहां जाया करो और उन्हीं में मेरा दर्शन हुआ करेगा साधु जी बोले महाराज मैं सरदहा गांव जाऊंगा किंतु मुझे आप के अवतार का विश्वास तब होगा जब यह सुमिरन मूंगा माला जो आपको आज देता हूं वही माला मुझे वह दे देंगे तब जगन्नाथ जी ने सुमिरन माला लेकर कहा कि अच्छा देख लेना यह बात किसी पुजारी को मालूम नहीं है तब साधु जी वहां से चलकर सरदहा गांव में पहुंचे और स्वामी जी ने वही सुमिरन माला उन साधु जी को दे दिया तब साधु जी को विश्वास हो गया और स्वामी जी के चरणों पर सिर रखकर कहा कि मुझ को ज्ञान का उपदेश दीजिए जिससे हमारे मन का भ्रम मिट जाए तब स्वामी जी ने अजपा जाप का मंत्र दिया। साधु उपदेश लेकर शांत चित्त हुए और तब से श्री समर्थ साई श्री जगजीवन दास के दर्शन हेतु आने लगे|(कीरति संख्या 13,संकलित अंश कीरत सागर )
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Wednesday, March 27, 2019
कीर्ति गाथा 13
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