एक बार समर्थ साईं जगजीवन दास के भतीजे अहलाद दास जी ने समर्थ साईं जगजीवन दास जी से निवेदन किया कि श्री जगन्नाथ जी के दर्शन पाऊं उससे संसार के समस्त विषाद और विकार दूर हो जाते हैं और समस्त इच्छाएं पूरी हो जाती हैं यदि आप आज्ञा दे तो मैं जगन्नाथपुरी को जाऊं स्वामी जी ने कहा जगन्नाथ जी तो सर्वत्र व्याप्त है वह कहां नहीं हैं वह घट घट वासी हैं कण-कण वासी हैं इसी स्थान पर सत्य भाव से उनका स्मरण करो और महा प्रसाद पाओ यदि इसका विश्वास नहीं है तो उड़ीसा चले जाओ तब अहलाद दास जी ने कहा कि साई मुझे आपकी बातों का पूर्ण विश्वास है मैं वहां नहीं जाऊंगा उसी समयसमर्थ साईं जगजीवन दास जी ने पूरी सब्जी बनवा कर एक थाली में परोसवाया और चौका लिपवाकर वही थाली रखवा दिया और उस पर पवित्र वस्त्र से ढक कर भक्ति भाव से पांच शब्द बिनय पूर्वक कहा
""राम का मैं प्रसाद लै आऊँ जो उपदेश दियो मोरे मन को ,सोई मंत्र में गांऊँ विद्या मोहिं पढ़ाइ सिखायव , सो पढ़ि जगत सुनाऊं जग भावै सो करहिं जाए, मैं मन अंत ना लाऊं कोई काशी कोई द्वारिका, कहां कहां मन दौराऊँ जगन्नाथ मैं एकै जानू सोई अंत में जाऊं तीनों चारों लोक प्रसारा अंत कहां ठहराऊँ जगजीवन दास अंतर मा साईं कबहु नहीं विसराऊँ "" उक्त शब्दों को कहने के उपरांत समर्थ साईं जगजीवन दास ने अहलाद दास जी से कहा कि चौके में जाकर थाली खोलो जब अहलाद दास जी ने थाली खोला तो उसमें छप्पन प्रकार का भोजन मौजूद पाया वह महाप्रसाद आनंद पूर्वक पाकर समर्थ साईं जगजीवन दास के चरणों में शीश नवा कर बोले कि आपकी प्रतिज्ञा सत्य है (कीरति संख्या 15,संकलित अंश कीरत सागर | कीर्ति गाथाएं |
Wednesday, March 27, 2019
कीर्ति गाथा 15
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