जब समर्थ साईं श्री जगजीवन दास जी का सातवां वर्ष शुरू हुआ तो विद्यारंभ के लिए पंडित जी बुलाये गए, तब पंडित जी ने विधि विधान सहित बेदी पर बैठाकर जैसे ही प्रणव अर्थात ऊँ शब्द का उच्चारण किया तब आप ने उसे हृदय में धारण कर लिया और जो वेदों का सार एकाक्षरी मंत्र है आप उसका जाप करने लगे ,जिसको, पढ़ने सुनने वाला मनुष्य जीवन जन्म मरण के दुख से छूटकर ब्रह्म रूप हो जाता है ,और आप यह शब्द गाने लगे ,
""सो साईं समरथ अहै जिन बहु साज बनायो रे क्षन एक माहिं सवै रचि लीन्हा नाहि विलंब लगाएव रे ""यह सुनकर पंडित जी और पिताजी को यह आश्चर्य हुआ कि आप सब विद्याओं को जानने वाले हैं तथा वेद शास्त्र में भी पहले से ही पूर्णतया पारंगत हैं। |
Friday, April 5, 2019
कीर्ति गाथा 8
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment