समर्थ साई जगजीवन दास जी एक दिन सरयू(घाघरा)में स्नान करके घर के चबूतरे पर नित्य नियम के अनुसार बैठे थे, तथा माता जी ने भोजन के लिए बुलाकर भोजन करवाया और दुहनी हाथ में देकर कहा कि गायों का दूध दुहाकर घर लेकर आओ ।समर्थ साई जगजीवन दास जी दुहनी लेकर गौशाला में गए और दूध दुहाकर घर पर आ रहे थे कि रास्ते में एक कांटा पांव में चुभ गया और वह वहीं ठहर गए। उस वक्त साधु रूप धारण करके कृष्ण जी व बलदेव जी वहां पहुंचे और दर्शन दिया। तब समर्थसाई जगजीवन दास जी ने प्रसन्नता पूर्वक सारा दूध उनको पिला दिया ,मगर साधु रूप में भगवान ने और दूध पीने की इच्छा प्रकट की तब समर्थसाई जगजीवन दास जी ने उसी दुहनी से फिर उनको दूध पिलाया इसके बाद में वे दोनों अंतर्ध्यान हो गए ,और खाली दुहनी लिए समर्थ साई जगजीवन दास जी घर वापस चले आए तब खाली दुहनी देखकर माताजी ने यह भी नहीं पूछा कि दूध का क्या हुआ ,बल्कि दुहनी की तरफ से अपनी निगाह हटा ली।अत: समर्थसाई जगजीवन दास जी समझ गए कि माता जी को दूध ना होने से कुछ सोच(दुख) हुआ है ।तब समर्थसाई जगजीवन दास जी ने दुहनी को फिर दूध से भरी हुई करके माताजी के सम्मुख रख दिया ,तब माताजी ने विचार किया कि मुझको देखने में भ्रम हुआ होगा कि मुझे भरी हुई दुहनी खाली दिखाई दे रही थी।।
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Saturday, April 6, 2019
कीर्ति गाथा 5
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