जब समर्थसाई जगजीवन दास जी पांच वर्ष के हुए तो खेलने का बहाना बनाकर मकान से दूर एक चबूतरा बनाया और उस चबुतरे पर बैठकर भगवान का ध्यान सुमिरन करने लगे .अचल समाधि लगाना अजपा जाप करना व सत्य की उपासना करना शुरू किया। इसके सिवा और दूसरे कामों से कोई मतलब नहीं रखते थे, जिस तरह से ध्रुव जी ने बाल्यावस्था में ध्यान करके भगवान को प्राप्त किया था ,उसी प्रकार समर्थसाई जगजीवन दास जी भी ब्रह्ममय हो गए और हर समय उदासीन चित्त अर्थात हर प्रकार की इच्छाओं से विरक्त होकर निर्मल एवं कांतिमय स्वरूप पाकर बड़े तेजस्वी होकर रहने लगे।
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Saturday, April 6, 2019
कीर्ति गाथा 4
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